भारत का नेपोलियन किसे कहा जाता है – Bharat Ka Napoleon Kise Kaha Jata Hai

Bharat Ka Napoleon Kise Kaha Jata Hai : नमस्कार, आप सभी का स्वागत है हमारी वेबसाइट नॉलेज तक में।आज का हमारा विषय भारत के स्वर्णिम इतिहास के बारे में रहने वाला है,

आज के इस प्रमुख लेख में हम बात करने वाले हैं कि भारत का नेपोलियन किसे कहा जाता है और क्यों कहा जाता है

इसके अलावा उस शासक से जुड़ी वे सभी जानकारियां और प्रमुख तथ्य जो आपको यह सोचने पर मजबूर कर देंगे की हम क्यों भारत के इतिहास को स्वर्णिम इतिहास कहते हैं।

हमारा भारतीय इतिहास शुरुआत से ही उतार-चढ़ाव वाला रहा है, उसमें कई शासकों का बलिदान हैं तो कई ऐसे वीर योद्धाओं का हमें जिक्र देखने को मिलता है जो कि अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध हैं और हमेशा रहेंगे।

आज एक ऐसे ही शासक कि हम बात करने वाले हैं जिनका उपनाम भारत का नेपोलियन हैं। उन्हें इस उपाधि से सम्मानित करने के पीछे क्या कारण हैं इसके बारे में आज के इस ज्ञान प्रद लेख में हम चर्चा करने वाले हैं।

 

Bharat Ka Napoleon Kise Kaha Jata Hai 
Bharat Ka Napoleon Kise Kaha Jata Hai

 

Bharat Ka Napoleon Kise Kaha Jata Hai 

भारत का नेपोलियन गुप्त वंश के शासक समुद्रगुप्त को कहा जाता है।

समुद्र गुप्त, गुप्त वंश के सबसे पराक्रमी राजाओं में से एक हैं और इसीलिए उनको इतिहासकार ए बी स्मिथ द्वारा भारत का नेपोलियन कहा गया था। अपने शौर्य और पराक्रम के द्वारा उन्होंने लगभग संपूर्ण भारत पर विजय प्राप्त की थी।

समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन के अलावा अन्य कई सारी उपाधियों से भी सम्मानित किया जा चुका है।

 

समुद्रगुप्त किस वंश के शासक थे 

भारत पर मध्यकाल से पहले कई सारे राजवंशों ने राज किया था, इनमें से प्रमुख राजवंश थे मौर्य, गुप्त आदि।

जब भारत में मौर्य काल का पतन हुआ तो एक ऐसे राजवंश का उदय हुआ जो गुप्त राजवंश के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

इस वंश में ऐसे कई शासकों ने जन्म लिया जो पराक्रमी और शौर्यवान थे। इसी गुप्त राजवंश में समुद्रगुप्त नाम का एक शासक हुआ जो कि कला, स्थापत्य, युद्ध, शौर्य और व्यवहारिकता से परिपूर्ण था।

अपनी कौशल युद्ध कला के कारण इन्हें युद्ध और ज्ञान वाला राजा भी कहा गया है। कई सारे इतिहासकारों ने इन्हें विभिन्न-विभिन्न उपाधियों से सम्मानित किया है, जिनमें से भारत का नेपोलियन एक उच्चतम उपाधि हैं।

समुद्रगुप्त, गुप्त राजवंश से संबंधित है। यह गुप्त वंश के 4th शासक थे।

 

समुद्रगुप्त के माता-पिता कौन थे 

चंद्रगुप्त प्रथम के उत्तराधिकारी के रूप में समुद्रगुप्त को जाना जाता है। समुद्रगुप्त के पिता का नाम चंद्रगुप्त प्रथम और इनकी माता का नाम कुमार देवी था।

इन दोनों की संतान के रूप में समुद्रगुप्त ने संपूर्ण भारत को एक परिपाटी में बांधे रखा और इसकी सीमाओं को अखंड हिमालय से लेकर भारत के दक्षिण में अरब सागर तक अक्षुण्ण रखा।

उस समय तक किसी भी शासक को अपनी क्षमताओं पर किसी प्रकार का विश्वास नहीं था कि क्या हम कभी समुद्रगुप्त को पराजित कर सकते हैं।

 

किस इतिहासकार ने समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा था

इतिहासकार ए बी इसमें द्वारा समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन की उपाधि से सम्मानित किया गया था।

ए बी स्मिथ उस समय यूरोप के एक बहुचर्चित इतिहासकार के रूप में प्रसिद्ध रहे हैं और इनके द्वारा कई शासकों पर विभिन्न प्रकार की पुस्तके भी रचित की गई हैं।

 

समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन क्यों कहा जाता है 

गुप्त वंश के शासक समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहने के पीछे जो सबसे बड़ी वजह हैं वह हैं, उनका किसी भी युद्ध में पराजित ना होना और यह जानकारी हमें उनके द्वारा बनवाए गई कई प्रशस्ति और लेखों में मिलता है।

साथ ही उनके दरबारी कवियो द्वारा भी जो कई सारी रचनाएं की गई हैं उनके द्वारा भी हमें इस बात की जानकारी प्राप्त होती हैं कि उनके द्वारा किसी भी युद्ध में हार का सामना नहीं किया गया था।

जिस प्रकार से नेपोलियन ने किसी भी युद्ध में हार का सामना नहीं किया था उसी प्रकार समुद्रगुप्त ने भी अपने जीवन काल में किसी भी युद्ध में पराजय का सामना नहीं किया।

उनके द्वारा लगभग संपूर्ण भारत को जीत लिया गया था और जीते गए प्रदेशों पर उन्होंने आक्रामक व्यवहार ना करते हुए

वहां पर शांति व्यवस्था कायम की और अपने राज्य के सभी नियमों और कानूनों को उस क्षेत्र पर भी समान रूप से लागू किया जिस प्रकार से वह अपने स्वयं के राज्य पर उन नियमों को लागू करते थे।

हालांकि कई सारे इतिहासकारों द्वारा इस बात की भी पुष्टि की जाती है कि नेपोलियन वाटरलू और ट्राफलमर के युद्ध में हार गया था,

जबकि समुद्रगुप्त किसी भी युद्ध में नहीं हारा था इसलिए समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहना अनुचित है क्योंकि समुद्रगुप्त अखंड विजेता थे।

 

समुद्रगुप्त द्वारा किन-किन क्षेत्रों पर अपना राज्य स्थापित किया गया 

जब हम समुद्रगुप्त द्वारा जीते गए क्षेत्रों की बात करते हैं तो लगभग संपूर्ण भारत को एक बार समुद्रगुप्त द्वारा जीत लिया गया था।

उनके द्वारा उत्तर में अफगानिस्तान से सिंध तक, जबकि दक्षिण में अरब सागर तक की विजय प्राप्त कर ली थी और पूर्व में रेतीले रेगिस्तान से लेकर वर्तमान में असम राज्य के नाम से जाने जाने वाले क्षेत्र कामरूप तक अपने राज्य का विस्तार किया था किया गया था।

इन के दरबारी कवि हरिसेन द्वारा रचित इलाहाबाद प्रशस्ति द्वारा हमें इनकी संपूर्ण भारत विजय की जानकारी प्राप्त होती हैं और साथ ही उन्होंने किन -किन क्षेत्रों पर राज्य किया इसकी भी जानकारी हमें इन प्रशस्तियो द्वारा प्राप्त होती है।

जब इन्हें चंद्रगुप्त प्रथम का उत्तराधिकारी नियुक्त किया गया और इनके द्वारा जब गुप्त वंश की राजगद्दी संभाली गई तब उन्हें अपने पड़ोसी राज्यों द्वारा कई बार छोटे-मोटे युद्ध में शामिल होना पड़ा था।

इनके द्वारा अपने पड़ोसी राज्यों अहिछात्र और नाग सेना की सेनाओं को पराजित किया गया था।

परंतु शासन के कुछ वर्षों बाद उन्होंने अपनी कूटनीति द्वारा इन राज्यों के साथ शांति संबंध स्थापित किए और उन्हें अपने राज्य मे शांति पूर्वक मिला लिया गया।

कूटनीतिक संबंधों के साथ-साथ इन्होंने इन राज्यों के साथ अपने वैवाहिक संबंधों को भी घनिष्ठ किया ताकि ये राज्य उन पर कभी हमला ना कर पाए।

अपने राज्य शासन के साथ वे वर्ष उनके द्वारा पूर्व में बंगाल, असम, नेपाल और बंगाल की खाड़ी तक के राज्यों को विजित कर लिया गया था।

उनके द्वारा उत्तर और दक्षिण भारत में जो विजय प्राप्त की गई थी उनके पीछे उनकी सोची समझी कूटनीति थी।

उत्तर भारत को जीतने के लिए समुद्रगुप्त ने दिग्विजय की नीति को अपनाया अर्थात की संपूर्ण क्षेत्र को सेना के दम पर जीता जाए

जबकि भारत के दक्षिणी भाग को उन्होंने धर्म विजय नीति के आधार पर जीता अर्थात की संपूर्ण क्षेत्र को हिंदू धर्म के नाम पर जीता जाए या सनातन धर्म के नाम पर जीता जाए।

 

समुद्रगुप्त की पत्नी का क्या नाम था 

भारत को सांस्कृतिक और धार्मिक रूप से एकजुटता में बांधने वाले शासक का नाम समुद्रगुप्त था।

जैसा कि आधुनिक समय में कहा जाता है हर सफल व्यक्ति के पीछे एक औरत का हाथ होता है किसी वाक्य को प्राचीन काल में भी समुद्रगुप्त द्वारा परिभाषित किया गया था।

  • समुद्रगुप्त की पत्नी का नाम दत्त देवी था।

यही समुद्रगुप्त की पत्नी थी इसकी जानकारी हमें एरण अभिलेख से मिलती हैं। जिसमें की दत्त देवी को समुद्रगुप्त की अर्धांगिनी कहा गया है।

 

समुद्रगुप्त के कितने पुत्र-पुत्री थे 

समुद्रगुप्त के 2 पुत्र थे। इनमें से बड़ा पुत्र राम गुप्त था जबकि छोटे पुत्र का नाम चंद्रगुप्त था।

बाद में आगे चलकर इन्हीं दो पुत्रों द्वारा उत्तराअधिकार का एक संघर्ष भी देखने को मिलता है।

समुद्रगुप्त के इन दोनों पुत्रों में से राम गुप्त बड़ा तो था परंतु वह निर्बल और कायर था, इस कारण से वह अपने पिता समुद्रगुप्त की प्रतिष्ठा को उस प्रकार से नहीं बचा सका।

समुद्रगुप्त की पुत्री के बारे में किसी प्रकार की जानकारी इतिहास में देखने को नहीं मिलती हैं इस वजह से यह कहना काफी मुश्किल है कि क्या वास्तविकता में समुद्रगुप्त की कोई पुत्री थी या नहीं।

 

समुद्रगुप्त का उत्तराधिकारी कौन बना 

भारत के नेपोलियन के नाम से विश्वविख्यात समुद्रगुप्त ने अपने राज्य को जिस प्रकार से अखंड बनाया था उस प्रकार से उसके उत्तराधिकारी द्वारा इसे नहीं रखा गया।

समुद्रगुप्त का उत्तराधिकारी इसका बड़ा बेटा राम गुप्त बना जो कि बड़ा ही निर्बल और कायर था। अपने पिता की भांति वह किसी भी कार्य में निपुण नहीं था।

राम गुप्त जब शासक बना उसके कुछ समय के बाद ही वह विदेशी आक्रांता शकों से हार गया था। इस हार में उसे अपने राज्य के कई सारे क्षेत्रों को भी खोना पड़ा था जिसमें की खास तौर पर उसके राज्य का पश्चिमी भाग था।

समुद्रगुप्त का छोटा बेटा चंद्रगुप्त द्वितीय युद्ध कौशल में निपुण था परंतु उसके बड़े भाई राम गुप्त के राजगद्दी पर बैठने के कारण वह अपना यह गुण अपने राज्य के लिए नहीं प्रयोग कर सका।

कुछ वर्षों बाद जब राम गुप्त सको से हार गया था तो चंद्रगुप्त द्वितीय द्वारा अपने बड़े भाई राम गुप्त की हत्या कर दी गई और वह गुप्त वंश का अगला उत्तराधिकारी बन बैठा।

गुप्त वंश की राज गद्दी संभालने के बाद चंद्रगुप्त द्वितीय ने सबसे पहले शकों को पराजित किया और अपने राज्य के उन सभी हिस्सों को पुनः प्राप्त किया जोकि कुछ समय पहले शको द्वारा जीत लिए गए थे।

 

समुद्रगुप्त ने किस प्रकार के सिक्के चलाएं 

आज की मुद्रा प्रणाली जिस प्रकार से सुव्यवस्थित और संगठित हैं, कुछ इसी प्रकार की मुद्रा प्रणाली प्राचीन काल में गुप्त साम्राज्य में विद्यमान थी।

गुप्त वंश के शासकों द्वारा शुरुआती दौर में ही विभिन्न-विभिन्न प्रकार के सिक्कों को प्रचलित किया गया था और उन्हें अपने राज्य में चलाया गया था।

इसी क्रम में गुप्त वंश के शासक समुद्रगुप्त द्वारा भी कई प्रकार के सिक्कों का प्रचलन अपने राज्य में किया गया था

एक स्वर्ण सिक्के पर समुद्रगुप्त को हाथ में वीणा लिए हुए बजाते दिखाया गया है

जिससे कि उसकी दोहरी रुचि हमें देखने को मिलती हैं। एक रुचि उसकी कला और संस्कृति के प्रति थी तो दूसरी रूचि उसकी सिक्कों के प्रचलन से संबंधित थी।

समुद्रगुप्त द्वारा अपने राज्य में लगभग हर प्रकार के सिक्कों का प्रचलन किया गया उनमें स्वर्ण और चांदी के सिक्के प्रमुख थे। इसके साथ साथ लोहे और तांबे के सिक्के भी कुछ मात्रा में इसके राज्य में प्रचलित है।

किसी भी राज्य में सोने और चांदी के सिक्कों का प्रचलन होना उस राज्य की अमीरी को दर्शाता था और यह साथ ही इस बात का भी परिचायक था कि वहां के लोग किस प्रकार की जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं।

समुद्रगुप्त ने अपने राज्य में विभिन्न विभिन्न आठ प्रकार के सिक्कों को जारी किया था।

यह अलग-अलग संख्यात्मक शब्दों के रूप में जाने जाते थे जैसे मानक, आर्चर, बैटल, एक्स, कच्चा, टाइगर, अस्मिता इत्यादि।

 

समुद्रगुप्त के सिक्कों द्वारा क्या जानकारी मिलती हैं 

जैसा कि हम जानते हैं समुद्रगुप्त द्वारा अपने राज्य में एक संगठित मुद्रा प्रणाली की स्थापना करने के लिए विभिन्न-विभिन्न प्रकार के सिक्कों का प्रचलन किया गया था

और उन पर विभिन्न-विभिन्न प्रकार की आकृतियों और अक्षरों का भी प्रयोग किया गया था, जिनके द्वारा मुख्यतः समुद्रगुप्त की विजयो का उल्लेख मिलता है।

इन सिक्कों का प्रचलन इसलिए भी किया गया था ताकि इनके द्वारा राज्य की आम जनता तक यह बात पहुंच सके कि उनके शासक द्वारा किन-किन उपलब्धियों को हासिल किया गया है और उनके शासक किस प्रकार के हैं।

साथ ही इन सिक्कों पर गुप्तकालीन संस्कृति का प्रभाव भी देखने को मिलता है। इन सोने और चांदी के सिक्कों पर विभिन्न प्रकार के गुप्तकालीन महलो और हवेलियों का चित्रण देखने को मिलता है।

एक स्वर्ण सिक्के पर समुद्रगुप्त को वीणा बजाते हुए दिखाया गया है जिससे यह सिद्ध होता है कि गुप्त काल में किस प्रकार से संगीत कला को सहेजा गया था और संगीत कला के प्रति किस प्रकार का आदर भाव गुप्त वंश के शासकों में था।

 

समुद्रगुप्त की भारत को क्या देन है 

अगर बात की जाए कि भारत को समुद्रगुप्त ने क्या दिया तो यह कहना अनुचित ना होगा कि सर्वप्रथम भारत को एक संपूर्ण रूप से अखंडता के बंधन में बांधने का कार्य समुद्रगुप्त द्वारा ही किया गया था।

इनके द्वारा भारत के चारों दिशाओं को जोड़कर अपने राज्यों को विस्तारित किया गया और उन पर सुव्यवस्थित रूप से शासन किया गया था।

आज यदि वर्तमान हम भारत सरकार की शासन प्रणाली को देखते हैं तो उसमें हमें कई प्रकार की कमियां नजर आती हैं,

परंतु आज से हजारों वर्षों पूर्व समुद्रगुप्त द्वारा इतने बड़े क्षेत्र को बहुत सोच समझ के साथ प्रशासनिक रूप से एकत्रित किया गया था।

इसके साथ ही समुद्रगुप्त द्वारा भारत की संगीत कला और भारत की स्थापत्य कला को एक नया आयाम दिया गया।

यदि हम भारत के इतिहास को पढ़ते हैं तो हम यह बातें हैं कि मध्यकाल में कई सारे मुगल शासकों द्वारा भारत की स्थापत्य कला को अपने उच्च शिखर पर पहुंचाया गया था

परंतु यह बात कहने में दो राय नहीं है कि उनसे भी पहले इसे गुप्त वंश के शासकों द्वारा उच्च स्तर तक पहुंचाया गया था।

समुद्रगुप्त द्वारा अपने राज्य में जिन महलों का निर्माण करवाया गया उनमें लगभग हमें हर प्रकार की स्थापत्य शैली देखने को मिलती हैं।

इसमें मुख्य रूप से बेसर और नागर शैली प्रमुख थी जो की स्थापत्य कला की सर्वश्रेष्ठ शैलीया लिया मानी जाती है।

साथ ही समुद्रगुप्त द्वारा बाहरी आक्रांता उसे भारत की सर्वप्रथम रक्षा की गई थी परंतु इसके उतराअधिकारियों द्वारा इसे अतुल नहीं रखा गया। समुद्रगुप्त को इन सभी विशेषताओं के कारण ही भारत का नेपोलियन कहा जाता है।

 

समुद्रगुप्त को कौन-कौन सी उपाधियां प्राप्त थी 

समुद्रगुप्त की सर्वश्रेष्ठ उपाधि के रूप में भारत का नेपोलियन उपाधि ही मानी जाती है परंतु इसके अलावा भी समुद्रगुप्त द्वारा कई सारी उपाधियों को ग्रहण किया गया था जो कि उसे युद्ध में विजय होने के बाद ही गई थी।

समुद्रगुप्त की लेखन शैली में अपनी रुचि के कारण उन्हें कवि राज की उपाधि प्राप्त थी। इसका उल्लेख हमें समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति में देखने को मिलता है।

समुद्रगुप्त द्वारा अपने शासनकाल में एक बार अश्वमेघ यज्ञ भी करवाया गया था, जिस कारण से उन्हें अश्वमेघ पराक्रम विक्रम की उपाधि प्राप्त थी। इस उपाधि का तात्पर्य होता है किसी से ना डरने वाला और अपने राज्य का निडरता से विस्तार करने वाला।

इसके अलावा समुद्रगुप्त को परम भागवत की उपाधि भी प्राप्त थी और इसकी जानकारी हमें नालंदा ताम्रपत्र से प्राप्त होती हैं।

समुद्रगुप्त द्वारा अपने राज्य में जिन सिक्को को जारी किया गया था उन पर सर्व राज श्रेष्ठ नाम का अंकन कराया गया था, जिसका अर्थ होता है सभी राजाओं में श्रेष्ठ राजा।

समुद्रगुप्त एक सनातन धर्म का शासक था और साथ ही उसकी हिंदू धर्म में शिव संप्रदाय में आस्था थी और वह ब्राह्मण धर्म का संरक्षक था।

इसी कारण से उसे इलाहाबाद स्तंभ शिलालेख में एक उपाधि से सम्मानित किया गया था और उसका नाम था धर्म प्रचार बंधु।

इस प्रकार से समुद्रगुप्त को ना केवल भारत के नेपोलियन के रूप में जाना जाता है बल्कि इसके इतर भी समुद्रगुप्त द्वारा कई सारी उपाधियों को धारण किया गया था। जिसके बारे में उल्लेख हमने किया है।

 

समुद्रगुप्त का दरबारी कवि कौन था 

किसी भी राजा के राज दरबार में राज कवि का होना अत्यंत आवश्यक है

क्योंकि राजा द्वारा जो भी युद्ध में विजय प्राप्त की जाती थी, उनके बारे में संपूर्ण रूप से रचना करना उसी राजकवि का कार्य होता था।

यह विजय रचना इसलिए भी रचित की जाती थी ताकि आगे आने वाले शासकों में अपने पूर्वज शासकों के प्रति आदर का भाव हो।

यदि बात की जाए समुद्रगुप्त के दरबारी कवि की तो उनका नाम था हरि सेन। इनके द्वारा ही प्रयाग प्रशस्ति की रचना की गई थी जिसके द्वारा हमें गुप्त वंश की अधिकांश जानकारियां प्राप्त होती हैं।

इस प्रयाग प्रशस्ति को इलाहाबाद प्रशस्ति के नाम से भी जाना जाता है, जिससे कि हमें गुप्त वंश की राजनीतिक स्थिति की जानकारी प्राप्त होती हैं।

इस प्रयाग प्रशस्ति में कुल 33 पंक्तियां उत्कीर्ण है।

 

समुद्रगुप्त की मृत्यु कब हुई 

भारत के नेपोलियन कहे जाने वाले पराक्रमी शासक समुद्रगुप्त की मृत्यु 380 ईसा पूर्व में हुई थी !

परंतु इसके बारे में कोई सटीक जानकारी हमें नहीं मिलती हैं।

कई सारी पुस्तकों में समुद्रगुप्त की मृत्यु के बारे में यह उल्लेख है कि इसकी मृत्यु 375 ईसा पूर्व में हुई थी परंतु वास्तविक उल्लेख ना होने के कारण इसे सत्यापित नहीं किया जा सकता हैं।

इनके शासन काल की अवधि 350 ईसा पूर्व से लेकर 380 ईसा पूर्व तक मानी जाती हैं। अपने इस शासन काल की अवधि में समुद्रगुप्त द्वारा कई सारी उपलब्धियां हासिल की गई थी।

 

FAQ : Bharat ka Napoleon kise kaha jata Hai in Hindi 

सवाल : समुद्रगुप्त का संबंध किस वंश से माना जाता है।

समुद्रगुप्त का संबंध भारत के गुप्त वंश से माना जाता है।

सवाल : भारत का नेपोलियन किसे कहा जाता है।

भारत का नेपोलियन समुद्रगुप्त को कहा जाता है। यह उपाधि इतिहासकार ए बी स्मिथ द्वारा समुद्रगुप्त को दी गई थी।

सवाल : समुद्रगुप्त को भारत का Napoleon क्यों कहा जाता है।

जिस प्रकार से नेपोलियन अपने जीवन में अखंड विजेता रहा, उसी प्रकार की उपलब्धि हासिल करने के कारण समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा जाता है। समुद्रगुप्त द्वारा भी अपने संपूर्ण जीवन काल में एक भी पराजय का सामना नहीं करना पड़ा था।

सवाल : गुप्त वंश के शासक चंद्रगुप्त प्रथम का उत्तराधिकारी कौन था।

गुप्त वंश के शासक चंद्रगुप्त प्रथम का उत्तराधिकारी उनका पुत्र समुद्रगुप्त था जिसने कि भारत के नेपोलियन की उपाधि प्राप्त की थी।

सवाल : समुद्रगुप्त के पुत्रों का क्या नाम था।

समुद्रगुप्त के 2 पुत्र थे राम गुप्त और चंद्रगुप्त द्वितीय। इनमें से राम गुप्त उनका ज्येस्ट पुत्र था जबकि चंद्रगुप्त द्वितीय उनका अनुज पुत्र था।

सवाल : समुद्रगुप्त का उत्तराधिकारी कौन बना।

समुद्रगुप्त का उत्तराधिकारी उनका बड़ा पुत्र राम गुप्त बना था परंतु अपने शासनकाल के कुछ वर्षों के बाद ही उसे शको द्वारा पराजित कर दिया गया था।

सवाल : समुद्रगुप्त के बारे में जानकारी हमें कहां से प्राप्त होती है।

समुद्रगुप्त द्वारा प्रचलित सिक्को से हमें समुद्रगुप्त के बारे में जानकारी प्राप्त होती हैं। इसके अतिरिक्त ऐसी कई सारी प्रशस्तिया  और अभिलेख भी है, जिनसे हमें इसके बारे में जानकारी मिलती है जैसे कि प्रयाग प्रशस्ति या इलाहाबाद प्रशस्ती।


conclusion 

इस प्रकार से आज के इस संपूर्ण लेख में हमने Bharat Ka Napoleon Kise Kaha Jata Hai के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त की हैं जो आपके लिए बहुत ही रोचक और जानकारी पूर्ण रही होगी।

किस प्रकार से समुद्र गुप्ता ने संपूर्ण भारत को एक अखंड राज्य के रूप में संचालित किया और एक बहुत बड़ी प्रशासनिक इकाई को सोच समझकर संचालित किया।

अगर आपको आज का यह हमारा ज्ञानप्रद लेख पसंद आया हो तो अपने सुझावों को हमारे कमेंट बॉक्स में जरूर टाइप करें ताकि आगे आने वाले समय में हम आपके लिए इसी प्रकार के ज्ञानवर्धक एक लाते रहे और आप की जानकारियों मैं और भी ज्यादा प्रदीप करते रहें। धन्यवाद