Parimey Sankhya Kise Kahate Hain : हम जब वैदिक गणित को पढ़ते हैं तो उसमें हमें विभिन्न प्रकार की संख्याओं की जानकारी मिलती है, जैसे की वास्तविक संख्या, पूर्ण संख्या, अपूर्ण संख्या, परिमेय संख्या, अपरिमेय संख्या इत्यादि
परंतु क्या आप जानते हैं यह सभी संख्याएं होती क्या है और किसी भी संख्या को किस प्रकार से इन में विभाजित किया जाता है
साथ ही यह कैसे तय किया जाता है कि कोई संख्या विभाजित है या कोई संख्या परिमेय है या अपरिमेय या फिर कोई संख्या पूर्ण संख्या है या अपूर्ण आदि
आज के इस वैदिक गणित से जुड़े हमारे लेख में हम इसी परिमेय संख्याओं के बारे में जानकारी प्राप्त करने वाले हैं कि, परिमेय संख्या क्या होती है, परिमेय संख्याओं के क्या प्रकार हैं और परिमेय संख्या कौन कौन सी हैं
अंग्रेजी भाषा में परिमेय संख्याओं को Rational numbers कहा जाता है
साथ ही आज के इस हमारे लिए का मुख्य विषय रहेगा Parimey Sankhya Kise Kahate Hain
हम जब सामान्य गणित पढ़ते हैं तो उसमें अंको से संबंधित अनेक प्रकार की गणनाए हमें करनी पड़ती हैं परंतु जब वैदिक गणित को पढ़ा जाता है तो इन सभी संख्याओं को विभिन्न प्रकारों में बांट दिया जाता है ताकि इन्हें आसानी से पहचाना जा सके और उपयोग में लाया जा सके
Parimey Sankhya Kise Kahate Hain in Hindi
एक सामान्य परिभाषा के अनुसार जो संख्या बार-बार आवर्त होती है उसे परिमेय संख्या कहा जाता है जैसे कि 1/3, 1/5 आदि
वहीं दूसरी और वैदिक गणित की परिभाषा के अनुसार ऐसी संख्या है जिन्हें p/q के रूप में लिखा जा सकता है, वह परिमेय संख्या का सूत्र कहलाती हैं
या जिन संख्याओं को अंश तथा हर के रूप में लिखा जा सकता है वह परिमेय संख्याएं कहलाती हैं
जैसे : 1/3, 3/2, 4/3 आदि
उदाहरण के तौर पर 2/0 एक परिमेय संख्या का उदाहरण नहीं है क्योंकि इसका हर जीरो हैं
यह सभी परिमेय संख्याएं दो प्रकार की होती हैं जो कि निम्नलिखित हैं :
धनात्मक परिमेय संख्या
जब हम किसी संख्या रेखा के दाएं और जाते हैं तो हमें सदैव धनात्मक परिमेय संख्याएं प्राप्त होती हैं और उनका मान भी सदैव धनात्मक ही होता है
धनात्मक परिमेय संख्याओं के उदाहरण हैं 1/2, 1, 2, 3/4 आदि
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ऋणआत्मक परिमेय संख्या
जब हम किसी संख्या रेखा के बाएं और जाते हैं तो हमें सदैव ऋण आत्मक परिमेय संख्याएं प्राप्त होती हैं और उनका मान भी सदैव ऋणआत्मक ही होता है
ऋण आत्मक परिमेय संख्याओं के उदाहरण हैं -2, -3, -4 आदि
इस प्रकार से आप परिमेय संख्याओं के दोनों प्रकारों को भी समझ चुके होंगे जो कि हमें एक संख्या रेखा के माध्यम से प्रदर्शित किए जाते हैं और समझाएं जाते हैं
PARIMEY संख्याओं के साथ अंश तथा हर का संबंध
अंश तथा हर का संबंध परिमेय संख्याओं के साथ होने का प्रमुख कारण है कि सभी परिमेय संख्याओं को अंश तथा हर के रूप में लिखा जा सकता है
उदाहरण के तौर पर p/q एक परिमेय संख्या है, इसमें p इस परिमेय संख्या का अंश तथा q इस परिमेय संख्या का हर हैं परंतु हर का मान जीरो नहीं होना चाहिए
वहीं अगर इसे संख्या के रूप में देखा जाए 3/4 एक परिमेय संख्या है इसमें, इस परिमेय संख्या का अंश 3 और इस परिमेय संख्या का हर 4 है परंतु हर का मान जीरो नहीं होगा
- संख्या 4/3 में 4 इस परिमेय संख्या का अंश तथा 3 इस परिमेय संख्या का हर हैं
- संख्या 7/8 में 7 इस परिमेय संख्या का अंश तथा 8 इस परिमेय संख्या का हर हैं
- संख्या -7/8 में -7 इस परिमेय संख्या का अंश तथा 8 इस परिमेय संख्या का हर हैं
- संख्या 11/9 में 11 इस परिमेय संख्या का अंश तथा 8 इस परिमेय संख्या का हर हैं
इस तरह से इन सभी परिमेय संख्याओं को अंश तथा हर के रूप में विभाजित किया जाता है और उनके मान को ज्ञात किया जाता है
संख्या रेखा पर परिमेय संख्याएं
एक संख्या रेखा के दाएं और चलने पर हमें सदैव ही सकारात्मक मान प्राप्त होता है तथा उसी संख्या रेखा के बाएं और चलने पर हमें सदैव नकारात्मक मान प्राप्त होता है
जब इन परिमेय संख्याओं को एक संख्या रेखा पर लिखा जाता है तो इन परिमेय संख्याओं का मान दाएं और जाने पर सदैव धनात्मक होता है तथा बाएं और जाने पर सदैव ऋणआत्मक होता है
- किसी संख्या रेखा के दाएं और जाने पर हमें निम्नलिखित मान प्राप्त होते हैं : 1/2, 1, 3/2, 2, 4/3, 3, 5/4, 4, 6/5, 5, 7/6, 6 आदि
- एक संख्या रेखा के मध्य का मान सदैव जीरो होता है जिसे की मध्य मान का भी कहा जाता है
- किसी संख्या रेखा के बाएं और जाने पर हमें निम्नलिखित मान प्राप्त होते हैं : -1/2, -1, -3/2, -2 आदि
ऋणआत्मक परिमेय संख्याओं तथा धनात्मक PARIMEY संख्याओं में समानताए तथा असमानताए
अब आप यह तो जान गए होंगे कि Parimey Sankhya Kise Kahate Hain और साथ ही किन्हीं परिमेय संख्याओं को संख्या रेखा पर किस प्रकार से प्रदर्शित किया जाता है
पर ऋणआत्मक परिमेय संख्याओ तथा धनात्मक परिमेय संख्याओं में क्या क्या समानता है और क्या क्या असमानता है, उन्हें जानना भी जरूरी है जो कि निम्नलिखित हैं :
- एक ऐसी परिमेय संख्या जिसके अंश तथा हर का मान सदैव धनात्मक होता है उसे धनात्मक परिमेय संख्या कहा जाता है
- एक ऐसी परिमेय संख्या जिसके अंश तथा हर का मान सदैव ऋण आत्मक होता है उसे ऋण आत्मक परिमेय संख्या कहा जाता है
- सभी धनात्मक परिमेय संख्याए सदैव जीरो से बड़ी होती हैं और उनका मान भी जीरो से अधिक होता है
- सभी ऋणआत्मक परिमेय संख्याए सदैव जीरो से छोटी होती हैं और उनका मान भी जीरो से कम होता है
- सभी धनात्मक संख्याओं में इनके मान चिन्ह सदैव समान होते है
- सभी ऋणआत्मक संख्याओं में भी इनके मान चिन्ह सदैव समान होते हैं
- एक संख्या रेखा पर ऋण आत्मक परिमेय संख्याएं हमेशा बाई और प्रदर्शित की जाती हैं
- एक संख्या रेखा पर धनात्मक परिमेय संख्याएं हमेशा दाएं और प्रदर्शित की जाती हैं
- धनात्मक परिमेय संख्याओं के उदाहरण हैं : 1, 1/2, 2, 3/2 आदि
- ऋण आत्मक परिमेय संख्याओं के उदाहरण हैं : -1/2, -1, -2/1 आदि
इस प्रकार से ऊपर लिखित सभी तथ्य ऋणआत्मक परिमेय संख्याओं तथा धनात्मक परिमेय संख्याओं के बीच समानता व तथा असमानता को स्पष्ट करते हैं
समतुल्य परिमेय संख्याओं के बारे में
अगर किसी परिमेय संख्याओं के अंश तथा हर को एक पूर्णांक से गुणा किया जाता है और यदि उन दोनों का मान एक समान प्राप्त होता है, तो वह संख्या एक समतुल्य Parimey Sankhya कहलाती हैं
समतुल्य संख्याएं होने का यह तात्पर्य है कि उन दोनों संख्याओं का आपस में एक समान मान होता है
इस तथ्य को कुछ उदाहरणों द्वारा समझा जा सकता है जो कि निम्नलिखित हैं :
प्रश्न संख्या 1 : अगर एक परिमेय संख्या 4/3 को 2 से गुणा किया जाए तो हमें इसकी एक समतुल्य परिमेय संख्या क्या प्राप्त होगी?
: उपरोक्त परिमेय संख्या के अंश तथा हर को 2 से गुणा करने पर हमें निम्नलिखित मान प्राप्त होगा
: 4×2 / 3×2
: 8 / 6
: इस प्रकार से परिमेय संख्या 4/3 के समतुल्य परिमेय संख्या 8/6 प्राप्त होगी
प्रश्न संख्या 2 : अगर एक परिमेय संख्या 7/4 को 8 से गुणा किया जाए तो हमें इसकी एक समतुल्य PARIMEY संख्या क्या प्राप्त होगी?
: उपरोक्त परिमेय संख्या के अंश तथा हर को 8 से गुणा करने पर हमें निम्नलिखित मान प्राप्त होगा
: 7 × 8 / 4 × 8
: 56 / 32
: इस प्रकार से परिमेय संख्या 7/4 के समतुल्य परिमेय संख्या 56/32 हमें प्राप्त होगी
प्रश्न संख्या 3 : अगर एक परिमेय संख्या 4/5 को 11 से गुणा किया जाए तो हमें इसकी एक समतुल्य PARIMEY संख्या क्या प्राप्त होगी?
: उपरोक्त परिमेय संख्या के अंश तथा हर को 11 से गुणा करने पर हमें निम्नलिखित मान प्राप्त होगा
: 4 × 11 / 5 × 11
: 44 / 55
: इस प्रकार से परिमेय संख्या 4/5 के समतुल्य परिमेय संख्या 44/55 होगी
प्रश्न संख्या 4 : अगर किसी एक PARIMEY संख्या 7/11 को 8 से गुणा किया जाए तो हमें इसकी एक समतुल्य परिमेय संख्या क्या प्राप्त होगी?
: उपरोक्त परिमेय संख्या के अंश तथा हर को 8 से गुणा करने पर हमें निम्नलिखित मान प्राप्त होगा
: 7 × 8 / 11 × 8
: 56 / 88
: इस प्रकार से परिमेय संख्या 7/11 के समतुल्य परिमेय संख्या 56/88 हमें प्राप्त होगी
प्रश्न संख्या 5 : किसी एक परिमेय संख्या 18/ 28 को 7 से गुणा करने पर हमें इस के समतुल्य PARIMEY संख्या क्या प्राप्त होगी?
: उपरोक्त लिखित अपरिमेय संख्या के अंश तथा हर को 7 से गुणा करने पर हमें निम्नलिखित मान प्राप्त होगा
: 18 × 7 / 28 × 7
: 126 / 196
: किस प्रकार से परिमेय संख्या 18/28 के समतुल्य परिमेय संख्या हमें 126/196 प्राप्त होगी और इस संख्या का सरलीकरण भी किया जा सकता है जिससे कि हमें इसका निम्नतम मान प्राप्त हो सके
इस तरह से आप इन परिमेय संख्याओं के 3 प्रकारों को समझ चुके होंगे जो कि कुछ इस प्रकार हैं :
- धनात्मक परिमेय संख्याएं
- ऋणआत्मक परिमेय संख्याएं
- समतुल्य परिमेय संख्याएं
अपरिमेय संख्या तथा परिमेय संख्या के बीच अंतर
जब किसी संख्या को अंश तथा हर के रूप में लिखा जा सके तो उसे परिमेय संख्या कहते हैं तथा वहीं दूसरी और यदि किसी संख्या को अंश तथा हर के रूप में नहीं लिखा जा सके तो उसे अपरिमेय संख्या कहा जाता है और इन दोनों के बीच यह एक सामान्य सा अंतर माना जाता है
पर इन दोनों के बीच में कौन-कौन से अंतर विद्यमान है जो इन दोनों को एक दूसरे से अलग बनाते हैं तो वे अंतर निम्नलिखित हैं :
- अपरिमेय संख्याओं का अनुपात के रूप में नहीं लिखा जा सकता है तो वही परिमेय संख्याओं का अनुपात के रूप में व्यक्त किया जा सकता है
- अपरिमेय संख्याओं का मान ऋणआत्मक अधिक रहता है तो वही परिमेय संख्याओं का मान ऋणआत्मक तथा धनात्मक दोनों हो सकता है
- परिमेय संख्याओं के उदाहरण हैं : 1, 1/2, 2/3, 3, 3/2 आदि
- अपरिमेय संख्याओं के उदाहरण हैं : √5, √7, √11, यूलर संख्या, गोल्डन संख्या इत्यादि
- अगर हम किसी एक अपरिमेय संख्या को एक परिमेय संख्याओं के साथ गुणा करते हैं तो हमें सदैव एक अपरिमेय संख्या ही प्राप्त होती हैं
- अपरिमेय संख्या और परिमेय संख्याओं का गुणनफल सदैव एक अपरिमेय संख्या ही होता है
- अगर हम किसी एक अपरिमेय संख्या को एक परिमेय संख्या के साथ जोड़ते हैं तो भी हमें सदैव एक अपरिमेय संख्या ही प्राप्त होती हैं
- अपरिमेय संख्या तथा परिमेय संख्याओं का जोड़ मान सदैव एक अपरिमेय संख्या ही होता है
- अपरिमेय संख्याओं का मान हमें एक संख्या रेखा पर देखने को नहीं मिलता है
- वही परिमेय संख्याओं का मान हमें एक संख्या रेखा पर देखने को मिलता है
परिमेय संख्याओं के गुणधर्म
वैदिक गणित में प्रयोग होने वाली विभिन्न प्रकार की संख्याएं जैसे की भाज्य संख्याएं, अभाज्य संख्याएं, अपरिमेय संख्या, पूर्ण संख्या अपूर्ण संख्या, प्राकृत संख्याएं इत्यादि
इन सभी संख्याओं के कुछ ना कुछ विशेष गुणधर्म होते हैं, जिनके द्वारा इनकी पहचान की जाती हैं एवं साथ ही इनका प्रयोग अंकों के साथ किया जाता है
- एक परिमेय संख्याओं को जोड़ा या घटाया जा सकता है जिस प्रकार से भिन्न संख्याओं को जोड़ा या घटाया जाता है
- एक PARIMEY संख्या का भाग या गुणा किया जा सकता है जिस प्रकार से अन्य भिन्न संख्याओं का भाग या गुणा किया जाता है
- अगर किन्हीं दो परिमेय संख्याओं को आपस में जोड़ा जाता है तो हमें एक परिमेय संख्या ही प्राप्त होती हैं और इससे संवर्थ परिमेय संख्या कहा जाता है
- उसी प्रकार अगर किन्ही दो परिमेय संख्याओं का आपस में गुणा किया जाता है तो भी हमें एक परिमेय संख्या ही प्राप्त होती हैं और इसे भी संवर्थ परिमेय संख्या ही कहा जाता है
- इन PARIMEY संख्याओं को जोड़ते समय या गुणा करते समय हमें एक निश्चित क्रम का ध्यान नहीं रखना पड़ता है, जिसे की क्रम भिन्नता भी कहा जाता है, इसी कारण से परिमेय संख्याओं को क्रम भिन्नता के आधार पर किसी भी क्रम में जोड़ा या गुना किया जा सकता है
- सभी परिमेय संख्या सहचारी होती हैं
- शून्य भी एक परिमेय संख्या का उदाहरण है क्योंकि यह संख्या रेखा के मध्य में स्थित होता है और इसके दाएं और जाने पर हमें धनात्मक परिमेय संख्याएं प्राप्त होती हैं
- वही शून्य के बाएं और जाने पर हमें ऋण आत्मक धन परिमेय संख्याएं प्राप्त होती हैं
- किन्ही दो परिमेय संख्याओं का गुणनफल सदैव एक परिमेय संख्या ही होता है
- किन्ही दो परिमेय संख्याओं का योगफल सदैव एक परिमेय संख्या ही होता है
- किसी भी परिमेय संख्या को एक ऐसे पूर्णांक से गुणा किया जाए जिस से गुणा करने पर उसका मान 1 प्राप्त हो तो इसे गुणन प्रतिलोम कहा जाता है जोकि परिमेय संख्या को निरूपित करने का काम करता है
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FAQs : Parimey Sankhya Kise Kahate Hain
सवाल : परिमेय संख्या की परिभाषा
जीरो को छोड़कर किन्हीं भी दो संख्याओं को आपस में भाग देने पर जो सबसे छोटा लघुतम हमें प्राप्त होता है उसे ही परिमेय संख्या कहा जाता है अर्थात की वह संख्या जिस को अंश एवं हर के रूप में लिखा जा सके
सवाल : कोई दो परिमेय संख्या बताइए?
1/2 और 4/3 यह दोनों परिमेय संख्याओं के उदाहरण हैं
सवाल : एक संख्या रेखा पर बाई और जाने पर क्या होगा?
एक संख्या रेखा पर बाई ओर जाने पर आने वाली सभी परिमेय संख्याएं नकारात्मक होंगी
सवाल : एक संख्या रेखा पर ओर जाने पर क्या होगा?
एक संख्या रेखा पर दाएं और जाने पर आने वाली सभी परिमेय संख्याएं सकारात्मक होगी
सवाल : अपरिमेय संख्या है किस प्रकार से परिमेय संख्याओं से अलग हैं?
जिस प्रकार से परिमेय संख्याओं को अंश तथा हर के रूप में लिखा जा सकता है तथा वहीं दूसरी ओर अपरिमेय संख्याओं को अंश तथा हर के रूप में नहीं लिखा जा सकता
सवाल : क्या किसी परिमेय संख्या का हर कभी शून्य हो सकता है?
नहीं, क्योंकि यदि उसका हर शून्य होगा तो उस संपूर्ण परिमेय संख्या का मान ही जीरो हो जाएगा
सवाल : सबसे छोटी परिमेय संख्या गणित में कौन सी हैं?
गणित में सबसे छोटी परिमेय संख्या शून्य होती हैं
सवाल : जब किसी संख्याओं के अंश तथा हर को एक साथ रखा जाता है, तो उस संख्या को क्या कहा जाता है?
इस प्रकार से निर्मित संख्याएं परिमय संख्याएं कहलाती हैं
सवाल : जो संख्या दशमलव के बाद बार-बार आती रहती हैं उसे क्या कहा जाता है?
जो संख्याएं दशमलव के बाद बार-बार आती रहती हैं उन्हें परिमेय संख्या कहा जाता है उदाहरण के तौर पर 4.121212….. etc.
सवाल : शून्य एक परिमेय संख्या है तो क्या इसे p/q के रूप में लिखा जा सकता है?
नहीं, जीरो को इस प्रकार से नहीं लिखा जा सकता है
Conclsuion
तो पाठक को हम आशा करते हैं कि आपको आज का हमारा यह लेख Parimey Sankhya Kise Kahate Hain बहुत ज्यादा पसंद आया होगा और आज के इस लेख को पढ़कर आप इन परिमेय संख्याओं के बारे में संपूर्ण जानकारी जान चुके होंगे
इस लेख को पढ़कर आप परिमेय संख्याओं के प्रकारों तथा उनके प्रयोगों को भी जान चुके होंगे कि किसी प्रश्न में किस प्रकार से इनका प्रयोग किया जाता है
साथ ही आप संख्या रेखा पर किस प्रकार से इन्हें निरूपित किया जाता है इत्यादि जानकारी भी आप इस लेख को पढ़कर जान चुके होंगे
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इस लेख को पढ़ने के लिए आप सभी पाठकों का बहुत-बहुत आभार और धन्यवाद