Tarain Ka Pratham Yuddh – तराइन का प्रथम युद्ध कब हुआ था ?

Tarain Ka Pratham Yuddh : हम जब भी भारतीय इतिहास की बात करते हैं तो उसमें हमें विभिन्न प्रकार के युद्ध देखने को मिलते हैं जो कि अपने अपने समय में सबसे महत्वपूर्ण माने जाते थे

अगर किन्हीं भी दो राजाओं के बीच में युद्ध होता है तो उसका सीधा सा असर उस राजा के राज्य पर पड़ता है और अगर राजा युद्ध में हार जाए तो उसके राज्य को बहुत सारे विपरीत प्रभाव भी झेलने पड़ते है

इसी प्रकार जब तराइन का युद्ध हुआ तो उसमें भी बहुत सारी माल और जनहानि हुई जिसका विपरीत प्रभाव उन दोनों गुटों पर पड़ा जिन्होंने इस युद्ध में भाग लिया था

आज के इस लेख में हम पृथ्वीराज चौहान और मुस्लिम आक्रमण करता शहाबुद्दीन मोहम्मद गौरी के मध्य लड़े गए एक युद्ध की बात करने वाले हैं जिसका नाम है तराइन का युद्ध

हालांकि यह तराइन का युद्ध दो बार लड़ा गया था पर दोनों बार इस की परिस्थितियां विपरीत थी और इसके परिणाम भी विपरीत ही रहे जिसके बारे में हम आगे चर्चा करने वाले है और साथ ही आज के हमारे इस लेख का मुख्य विषय रहेगा Tarain Ka Pratham Yuddh

पर आज के इस लेख में हम तराइन के प्रथम युद्ध के बारे में ही चर्चा करने वाले हैं जो कि हरियाणा के निकट थानेश्वर नामक स्थान पर हुआ था हालांकि आज यह जगह अपने पुराने स्वरूप में नहीं रही है पर आज भी उसी युद्ध के कुछ अंश हमें वहां देखने को मिलते हैं

 

Tarain Ka Pratham Yuddh

 

Tarain Ka Pratham Yuddh – तराइन का प्रथम युद्ध कब हुआ था ?

तराइन के युद्ध के बाद भारत में मुस्लिम आक्रमण कर्ताओं को एक सीधा सा संदेश मिल गया कि अब भारत पर कब्जा नही किया जा सकता है क्योंकि इस युद्ध में भारत के वीर पृथ्वीराज चौहान की जीत हुई थी

यह Tarain Ka Pratham Yuddh 1191 ईस्वी में लड़ा गया था और इस युद्ध में दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान की जीत हुई थी वही मुस्लिम आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी की इसमें हार हुई परंतु छल कपट से तराइन के दूसरे युद्ध में मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को हरा दिया और उन को बंदी बनाकर अपने साथ अफगानिस्तान ले गया

पर वहां पर पृथ्वीराज चौहान ने अपने शब्दभेदी बाणों के द्वारा मोहम्मद गोरी को मार डाला और स्वयं भी शहीद हो गए

यह तराइन का मैदान वर्तमान में पंजाब के निकट एक शहर भटिंडा के पास में स्थित हैं और यहीं पर सरहिंद किले के पास में स्थित तराइन के मैदान में पृथ्वीराज चौहान और मुस्लिम आक्रमणकारी मोहम्मद शहाबुद्दीन गोरी के बीच में यह युद्ध लड़ा गया था

इस युद्ध में अजमेर एवं दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान ने अपनी साहसी गतिविधियों के बल पर इस मुस्लिम आक्रमणकारी शहाबुद्दीन गौरी को हरा दिया था

इस युद्ध में मोहम्मद गोरी अपना प्रभाव बहुत ज्यादा नहीं दिखा पाया और पृथ्वीराज चौहान के हाथों मरता मरता बचा एवं अपनी इसी घायल अवस्था में अपने सैनिकों के साथ यह मैदान से भाग खड़ा हुआ और यह मान लिया गया कि प्रथम युद्ध पृथ्वीराज चौहान ने ही जीता है

 

तराइन का दूसरा युद्ध क्यों हुआ?

पहले तराइन के युद्ध में जो कि 1191 ईस्वी में हुआ था, इस युद्ध में मोहम्मद शहाबुद्दीन गौरी की पराजय हो गई थी परंतु पृथ्वीराज चौहान ने उसे बंदी नहीं बनाया और ऐसे ही जाने दिया

शायद पृथ्वीराज चौहान की इसी सबसे बड़ी गलती के कारण शहाबुद्दीन गोरी ने फिर से यह निर्णय लिया कि वह तराइन का युद्ध एक बार फिर करेगा और इस बार पृथ्वीराज चौहान को अपनी छल कपट विद्या सेहरा देगा और ऐसा ही हुआ

शहाबुद्दीन मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान के साथ संधि का हाथ बढ़ाने में छल कपट कर ली और पृथ्वीराज चौहान को बंदी बना लिया और इस प्रकार से इस युद्ध में मोहम्मद गौरी की जीत हुई

पर बहुत सारे इतिहासकारों का मानना है कि अफगानिस्तान में जब पृथ्वीराज चौहान को बंदी बना लिया गया तो वहां पर उन्होंने अपने शब्दभेदी बानो की कला से मोहम्मद शहाबुद्दीन गोरी को मार दिया और स्वयं को भी मार डाला क्योंकि वह किसी का गुलाम बनकर नहीं रहना चाहते थे

हालांकि कुछ इतिहासकारों का मानना है की तराइन का दूसरा युद्ध भी पृथ्वीराज चौहान ने ही जीता था और साबुद्दीन गौरी को यानी कि मोहम्मद गौरी को भारत से खदेड़ भी दिया था पर इन सभी के बारे में स्पष्ट जानकारियां प्राचीन ग्रंथों से ही मिलती हैं जो कि उस समय लिखे गए थे

जैसे कि प्रोफेसर दशरथ शर्मा द्वारा लिखी गई पुस्तक द अर्ली चौहान डायनेस्टीज etc.

पृथ्वीराज चौहान को अपने ही मौसेरे भाई जयचंद की वजह से इस दूसरे युद्ध में हार का सामना करना पड़ा था क्योंकि उसने पृथ्वीराज चौहान की संपूर्ण गुप्त जानकारियां मोहम्मद गोरी को दे दी थी

 

तराइन का प्रथम युद्ध होने के कारण

किसी भी युद्ध के होने का सबसे बड़ा कारण होता है, राजाओं की महत्वकांक्षी सोच

यही एक कारण इस तराइन के युद्ध में भी रहा क्योंकि मोहम्मद शहाबुद्दीन गोरी अधिकतर विश्व के पश्चिमी हिस्से को जीत चुका था और वह अब अपना शासन भारत में भी स्थापित करना चाहता था और इसी महत्वकांसा के चलते उसने अजमेर और दिल्ली पर अपनी सत्ता स्थापित करना चाही

पर उसे यह नहीं पता था कि यहां पर एक राजा पृथ्वीराज चौहान भी राज करते हैं जिन्हें कि “हिंदू हृदय सम्राट” कहा जाता है और यह चौहान राजवंश के एक प्रतापी राजा हैं

पृथ्वीराज चौहान यह कभी भी नहीं चाहते थे कि भारत की भूमि पर अरब प्रायद्वीप के मुस्लिम आक्रमण कर्ताओं का शासन स्थापित हो और साथ ही पृथ्वीराज चौहान भारत की भूमि को इन बाहरी आक्रमण कर्ताओं से बचा कर रखना चाहते थे

अगर मोहम्मद गौरी की बात की जाए तो भारत में प्रवेश करते ही उसने 1186 ईसवी में लाहौर के राजवंश की गति को छीन लिया था और इसी कारण से इसका आत्मविश्वास और भी चरम सीमा पर पहुंच गया था

इसके अलावा तराइन का युद्ध होने के पीछे एक कारण यह भी था कि शहाबुद्दीन मोहम्मद गौरी भारत में मुस्लिम धर्म का प्रचार प्रसार करना चाहता था और यहां के लोगों का धर्म परिवर्तन करके उन्हें भी मुस्लिम धर्म में शामिल करना चाहता था ताकि मुस्लिम धर्म के अनुयायियों की संख्या पूरे विश्व में सबसे ज्यादा हो जाए

उस समय तक भारत सोने की चिड़िया कहलाती थी और भारत में लगभग सभी राजाओं के पास बहुत सारी संपत्ति और धन दौलत विद्यमान थी और इसी कारण से मोहम्मद गोरी भी इस धन और संपत्ति को अपने साथ लूट कर ले जाना चाहता था

तराइन का दूसरा युद्ध समाप्त होने के बाद मोहम्मद गोरी ने ऐसा ही किया को यहां से बहुत सारी संपत्ति को लूट कर अपने साथ अफगानिस्तान ले गया

मोहम्मद शहाबुद्दीन गौरी की तरह ही पृथ्वीराज चौहान भी अपने राजवंश का विस्तार लाहौर और पंजाब तक करना चाहते थे और इसी दौरान उनकी भिड़ंत शहाबुद्दीन मोहम्मद गोरी से हुई और जिसका परिणाम तराइन का प्रथम युद्ध निकला

उस समय तक यह पंजाब का इलाका बहुत ही ज्यादा धन-धान्य से परिपूर्ण था क्योंकि वहां पर पांच नदियां बहती थी और इसी कारण से इसे पंजाब नाम भी दिया गया था

इस कारण से प्रत्येक शासक किस पंजाब और लाहौर के भाग पर अपना आधिपत्य स्थापित करना चाहता था और इसी अति पत्ते स्थापित करने की होड़ में पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद शहाबुद्दीन गौरी के बीच में तराइन का प्रथम युद्ध भी लड़ा गया था

तो कुछ इन्हीं विशेष कारणों की वजह से Tarain Ka Pratham Yuddh इन दोनों शासकों के बीच में लड़ा गया था

 

तराइन के युद्धों का भारतीय इतिहास पर परिणाम

इन दोनों तराइन के युद्ध के बाद भारतीय इतिहास पर आमूलचूल परिवर्तन देखने को मिले क्योंकि इन युद्धों के बाद अब भारत में मुस्लिम आक्रमण का खतरा और भी ज्यादा बढ़ गया था

इस युद्ध के बाद ही भारत में विभिन्न प्रकार के राजवंशों की स्थापना हुई थी जो कि मुख्यता मुस्लिम राजवंश थे और उन्ही मुस्लिम राजवंशों में से कुछ प्रमुख राजवंश निम्नलिखित हैं :

  • गुलाम राजवंश
  • खिलजी राजवंश
  • तुगलक राजवंश
  • सैयद राजवंश
  • लोदी राजवंश
  1. इन दोनों युद्धों के बाद में अजमेर एवं दिल्ली पर हिंदू राजाओं का शासन धीरे-धीरे कमजोर पड़ता गया और उन्हें बाहरी आक्रमण कर्ताओं का सामना करना पड़ा
  2. उचित रूप से युद्ध ना जीत पाने के कारण उन्हें जानबूझकर इन मुस्लिम आक्रमण कर्ताओं के साथ संधि करनी पड़ती थी और अपने शासन का कुछ हिस्सा इनको देना भी पड़ता था
  3. इन दोनों तराइन के युद्ध के बाद में उत्तरी भारत पर मुस्लिम आक्रमण कर्ताओं का शासन बढ़ता ही चला गया और अधिकतर उत्तरी भारत पर इनका शासन स्थापित हो गया था
  4. पर इन मुस्लिम आक्रमण कर्ताओं के द्वारा दक्षिण भारत में कभी भी नहीं देखा गया क्योंकि वहां के प्रतापी राजाओं को हरा पाना इन के बस की बात नहीं थी क्योंकि वहां पर शिवाजी जैसे सपूत विवाद में पैदा हुए थे
  5. ऐसा माना जाता है कि तराइन के प्रथम युद्ध के बाद में पृथ्वीराज चौहान को 7 करोड़ रुपए की धन संपदा प्राप्त हुई थी और इस पूरी धनसंपदा को उन्होंने अपने राजपूत शासकों में बांट दिया था अर्थात इससे यह भी स्पष्ट होता है कि हिंदू शासक भी उन आक्रमण करता उसे बहुत सारी संपत्ति छीना करते थे
  6. तराइन के युद्ध के बाद पृथ्वीराज चौहान की जय जयकार संपूर्ण भारत में हो गई थी क्योंकि एक बाहरी आक्रमण कर्ता को इतनी आसानी से हरा पाना किसी भी शासक के बस की बात नहीं होती है
  7. इस युद्ध के बाद बहुत सारे हिंदू शासकों को इस बात का अनुभव भी हो चुका था कि हो सकता है कि कई बार हमारे साथ रहने वाले ही हमारे साथ युद्ध में धोखा कर दे क्योंकि तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान के साथ उनके मौसेरे भाई जयचंद ने ही धोखा किया था और जबकि तराइन के प्रथम युद्ध में उसी जयचंद ने पृथ्वीराज चौहान का साथ दिया था मोहम्मद गोरी को हराने में
  8. पृथ्वीराज चौहान की हार का सबसे बड़ा कारण यह रहा था कि उनके पड़ोसियों ने ही उनकी मदद नहीं की थी अर्थात की पृथ्वीराज चौहान ने अपने पड़ोसी राज्यों के साथ अच्छे संबंध ना रखकर सबसे बड़ी गलती की और इसी की सजा उन्हें तराइन के दूसरे युद्ध में भुगतनी पड़ी
  9. अगर पृथ्वीराज चौहान के पड़ोसी राज्य उनकी इस द्वितीय युद्ध में मदद कर देते तो शायद बहुत ही आसानी से मोहम्मद गौरी हार जाता और इस बार शायद वह जिंदा भी नहीं बचता क्योंकि पृथ्वीराज चौहान उसे माफ करने की सजा को पहले ही भुगत रहे थे

 

FAQs : Tarain Ka Pratham Yuddh

सवाल : Tarain Ka Yuddh कब हुआ था?

यह प्रथम युद्ध सन 1191 ईस्वी में हुआ था

सवाल :  तराइन का दूसरा युद्ध कब हुआ था?

यह दूसरा युद्ध सन 1192 ईस्वी में हुआ था

सवाल : तराइन के प्रथम युद्ध में किसकी जीत हुई थी?

इस युद्ध में अजमेर और दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान की जीत हुई थी

सवाल : तराइन का प्रथम युद्ध कहां लड़ा गया था?

तराइन का प्रथम युद्ध सरहिंद में लड़ा गया था जो कि वर्तमान पंजाब के एक शहर भटिंडा के पास में स्थित हैं

सवाल :  तराइन का द्वितीय युद्ध क्यों लड़ा गया?

पृथ्वीराज चौहान ने पहले युद्ध में मोहम्मद गौरी को पराजित कर उसे छोड़ दिया था और जिसका फायदा उठाकर मोहम्मद गोरी ने वापस हमला कर इस युद्ध को अंजाम दिया

सवाल :  क्या तराइन का तीसरा युद्ध लड़ा गया था?

हां, यह युद्ध 1215 में एल्टुटमिश और कबूचा के बीच लड़ा गया था और इस युद्ध में एल्टुटमिस इस की जीत हुई थी

सवाल :  तराइन का पहला युद्ध क्यों लड़ा गया था?

मुस्लिम आक्रमणकारी मोहम्मद गोरी अपना शासन अजमेर और दिल्ली पर स्थापित करना चाहता था और अपनी सत्ता को बढ़ाना चाहता था इसी कारण से तराइन का प्रथम युद्ध लड़ा गया

 

Conclusion

तो पाठकों हम आशा करते हैं कि आपको आज का हमारा यह लेख Tarain Ka Pratham Yuddh बहुत ज्यादा पसंद आया होगा और इस लेख को पढ़कर आपको भारतीय इतिहास के एक प्रमुख युद्ध के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई होगी

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इस लेख को पढ़ने के लिए आप सभी पाठकों का बहुत-बहुत आभार और धन्यवाद