Mahaveer Ka Janm Kahan Hua Tha | महावीर का जन्म कहां हुआ था?

Mahaveer Ka Janm Kahan Hua Tha : हम में से लगभग सभी लोग भगवान् बुद्ध और महावीर के बारे में जानते होंगे, इन दोनो की मूर्ती को देखने से लगता है जैसे यह दोनों एक ही है पर ऐसा बिलकुल नही है

आपको यह भी जानके हैरानी होगी की यह दोनों एक समय के ही भगवान् है, यह दोनों अपने अपने धर्म के स्थापक और उस धर्म को आगे लेके जाने वाले संस्थापक है

बुद्धा के बौद्ध धर्म को हम सब जानते ही है और जैन धर्म का प्रचार तो बाहर के देशो तक है, जैन धर्म के संस्थापक है, दोनों ही धर्म बहुत तरह से सामान है और इन दोनों धर्मो में बहुत अंतर भी है

यह दोनों धर्म ही भगवान् की पूजा आदि करने को नही कहते है, भगवान् महावीर का जीवन बिहार राज्य से शुरू हुआ था वह अपने समय के जैन धर्म के सबसे आखरी तीर्थंकर थे

भगवान महावीर को मुख्य रूप से विष्णुपुर विभूति महावीर के नाम से जाना जाता है, पर यह महाबीर के नाम से ही प्रसिद्ध है और इन्हें इनका यह नाम इनके वीरता पूर्ण कार्यों से प्राप्त हुआ है

इनके जीवन और जन्म के बारे में जानना ही हमारे आजके इस आर्टिकल का उद्देश्य है, इनका जन्म और इनके जन्म से जुडी सभी चीज़ों हम आपको आज इस आर्टिकल में बताएँगे

 

Mahaveer Ka Janm Kahan Hua Tha

 

Mahaveer Ka Janm Kahan Hua Tha

 इनका जन्म एक क्षत्रीय परिवार में हुआ था, महावीर का जन्म ईसा से 599 वर्ष पूर्व वैशाली गणतंत्र के कुंडग्राम नाम की जगह में राजा सिद्धार्थ और उनके पत्नी त्रिशला के घर हुआ था  

वह दिन चैत्र शिक्ल तेरस का था, उनके जन्म से पहले रानी बहुत से सपने देखा करती थी और महावीर भगवान् के जन्म से पहले भी ऐसा माना जाता है की उनके राज्य में बहुत ही उन्नत्ति होने लगी थी और कहानियों में ऐसा कहा जाता है की स्वर्ग से अप्सराएं आके रानी की सेवा करती थी और राजा के राज्य मे हर तरह से उन्नति हो रही थी

एक दिन रानी ने सपने में देखा की उनके मुंह में एक हाथी प्रवेश किया है, तो इस सपने का तात्पर्य पूछने के बाद राजा ने बताया की रानी आपके गर्भ से 9 महीने के बाद बहुत ही तेजस्त्वी बालक का जन्म होगा

और ऐसा ही हुआ 9 ,महीने बाद उनके घर में एक बालक ने जन्म लिया जिसे राजा और रानी ने विष्णुपुर विभूति  का नाम दिया इनके कार्यों ने इन्हें वीर और फिर आगे चलके महावीर का नाम दिया गया

महावीर स्वामी जैन धर्म के आख़री तीर्थकर है, इनसे पहले के तीर्थकरों के नाम ही हमारे इतिहास में मौजूद है उनके बारे में और उनके जीवन के बारे में नही दिया गया है, जिसके कारन हमें इतिहास में और तथ्यों के अनुसार सिर्फ महावीर स्वामी के ही जीवन के बारे में पता चलता है

 

स्वामी महावीर के जीवन की कथा 

स्वामी महावीर जैन धर्म के तीर्थंकर के रूप में जाने जाते है, कहने का तात्पर्य यह है की यह जैन धर्म के सबसे प्रसिद्ध धर्म गुरु है,

इन्ही से आज जैन धर्म जीवित है, इस धर्म को मानने वाले लोगों को जेनास कहा जाता है और इस धर्म को मानाने वाले लोगों का मानना है की यह 24 गुरु है और इनसे पहले भी 23 तीर्थंकर रह चुके है

 

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तीर्थंकर शब्द से तात्पर्य है धर्म गुरु, यह सबसे आखरी जैन धर्म के गुरु है और आजके समय में भी इन्ही को माना जाता है, इनकी बहुत सी मूर्तियाँ आपको बहुत जगह देखने को मिल जाएँगी और तो और इनका प्रचार आजके समय में भी अलग अलग जगह हो रहा है

बाहर के देशों में भी इस धर्म का प्रचार है और बाहर के देश के लोग भी इस धर्म को मानते है और इस धर्म की शुरुआत भी भारत से ही हुई है इस बात में तो किसी को संदेह नही होना चाहिए

इनका जन्म जिस जगह हुआ है उस जगह अथवा राज्य को आजके समय में बिहार नाम के राज्य के नाम से जाना जाता है

 

महावीर स्वामी का जन्म और विवाह कहां हुआ था

इनका जन्म किस इसा पूर्व में हुआ था इसकी सटीक जानकारी मौजूद नही है पर कहा जाता है की महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व या 540 ईसा पूर्व में हुआ था इनका जन्म कुंडग्राम नाम के गाव में हुआ था यह गाँव बिहार में स्थित है

इनके बचपन का नाम वर्द्धमान था, इनका जन्म मुखिया सिद्धार्त के घर हुआ था, बहुत सी मान्यताओं के हिसाब से कही पर सिद्धार्थ को मुखिया कहा गया है और बहुत जगह इन्हें राजा कहके संबोधित किया गया है

इनकी माता का वास्तविक नाम विदेहदत्ता था और यह त्रिशला के नाम से जानी जाती थी

महावीर स्वामी का विवाह भी हुआ था और उन्होंने संतान सुख भी प्राप्त हुआ था, महावीर स्वामी का विवाह यशोदा से हुआ था और इन दोनों को एक पुत्री प्राप्त हुई थी

 

राजपाठ का त्याग और मानवता का कल्याण 

यह 30 साल तक ग्रहस्त जीवन जीते रहे फिर एक दिन जब इनको लगा की इनको इस जीवन से सुख नही तब इन्होने अपने पिता और बड़े भाई से आज्ञा लेकर गृह और राज्य का त्याग कर दिया और स्वयं की खोज में निकल गए

कहा जाता है की इनके पिता ने महावीर स्वामी को राज पाठ सँभालने के लिए कहा था जहाँ पर इन्होने कहा था की इनको इन सबमे कोई दिलचस्पी नही है और वह आत्मज्ञान प्राप्त करना चाहते है

पर कई किताबों में यह लिखा हुआ है की इन्होने अपने बड़े भाई  नन्दिवर्धन से बात की और उनकी आज्ञा से गृहत्याग किया

गृहत्याग करने के बाद स्वामी महाराज अपने ग्राम को छोड़ते हुए एक बगीचे में जाकर एक अशोक वृक्ष के नीचे बैठ गये और सन्यासी के जैसा जीवन व्यतीत करने लगे, महावीर का जन्मस्थान उन्हें अपने ज्ञान प्राप्ति के लिए छोड़ना पड़ा

जिस वन में स्वामी जी गए थे उस वन को  षन्दवन के नाम से जाना जाता था, इन्होने अपने सभी राजशी वस्त्रों का त्याग कर दिया और एक वनवासी की तरह साधारण कपडे पहन लिए साथ में यह उपवास करते ध्यान लगाते और भिक्षा मांग कर भोजन बनाते थे

 

महावीर स्वामी को कितने वर्ष की तपस्या करनी पड़ी 

आपने महावीर स्वामी की बहुत सी मूर्तियों को नग्न अवस्था में देखा होगा और सोचा होगा की ऐसा है क्यों, क्यों एक ऐसे व्यक्ति की मूर्ती ऐसी बनायी गयी है जिसको लोग पूजते है और जो जैन धर्म के गुरु है आइए जानते है

Mahaveer Ka Janm Kahan Hua Tha इससे ज्यादा ज़रूरी उनके जीवन का संघर्ष और उनकी तपस्या है

इन्होने अपने सन्यासी जीवन की शुरुआत कुम्भार गाँव से की और 13 महीने तक इन्होने अपने साधारण कपड़ो में ही जीवन व्यतीत किया

फिर अचानक कुछ समय बाद इन्होने अपने सपूर्ण कपड़ों का त्याग कर दिया अपने धारण किये हुए कपडे सुवर्ण बालुका नदी में फेक दिए

यह नग्न होकर एक हाथ में भिक्षा के लिए कटोरा लेकर भिक्षा माँगने जाते थे, 6 वर्ष तक वह एक जगह से दुसरे जगह अकेले ही यात्रा करते रहे, जहा जाते वही के आस पास के लोगों से भिक्षा मांग कर अपने जीवन का गुज़ारा करते है

अपनी तपस्या के 6 वर्ष बाद इनकी मुलाकात  गोशाल नाम के एक सन्यासी के साथ हुई थे इन्होने मिलके कोल्लाग नाम की जगह पर कठोर तप किया और इन दोनों की आपस में नही बनी और एक समय के बाद यह दोनों एक दुसरे एक विरोधी बन गए

इन्होने अपनी तपस्या जारी रखी और ऐसे करते करते 12 वर्ष बीत गए 12 वर्ष के बाद जब इन्होने अपने 13 वर्ष की तपस्या शुरू करी तब तक इनका शरीर बेकार होना शुरू हो चूका था इनके शरीर पर कीड़े पड़ने लग गए थे

फिर एक दिन वह समय आ ही गया जिनका इनको इंतज़ार था, स्वामी जी को ज्रम्भिका ग्राम में ऋजुपालिका नदी के किनारे  शाल वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ती हुई

और तभी से स्वामी महावीर समाज के कल्याण का कार्य करने लगे, इन्हें पूज्य, विजय और आज़ाद कहा जाने लगा, इनके उपदेश लोगों का जीवन बदलने लगे और ऐसे महावीर स्वामी महावीर बने

 

स्वामी महावीर के उद्देश्य 

जैन धर्म के वैसे तो स्वामी महावीर 24 संस्थापक और धर्म गुरु थे पर हम ऐसा कह सकते है की इन्होने ही जैन धर्म को इतना मजबूत और अमर बनाया है इनके उपदेश ही आजके समय में जैन धर्म के उपदेश है स्वामी महावीर का जन्म कहाँ हुआ था यह तो हम जान ही गए है अब उनके उपदेशों के बारे में जानते है

इन्ही के कारन जैन धर्म दुनिया भर में विख्यात है और हमारे ग्रंथों में भी इनके ही जीवन का अनुभव बताया गया है

स्वामी महावीर के उपदेश इस प्रकार थे

1) त्याग 

स्वामी महावीर के मुताबिक जीवन मृत्यु एक चक्र है और जो व्यक्ति चीज़ों से जीवन से और लोगों से अपना मोह नही छोड़ता है वह जीवन भर इसी चक्र में फ़सा रहता है

इसलिए हमें चीज़ों और लोगों से आसक्ति नही रखनी चाहिए और हर उस चीज़ का त्याग कर देना चाहिए जो हमारे मन को बाँध रही हो और हमारे जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्ति में बाधा बन रही हो


2) अच्छा आचरण 

हमें एक उत्तम आचरण दिखाना चाहिए, हमेशा और लोगों के साथ सही से बर्ताव करना चाहिए यही महावीर का उपदेश था, उनका मानना था की बुरे आचरण से हम और लोगों के कर्मों से और अपने कर्मों से जुड़ जाते है जिससे बंधन पैदा होता है इसीलिए अच्छा आचरण दिखाना अनिवार्य है


3) अस्तेय 

इस उपदेश में महावीर बताते है की हमें और लोगो की वस्तुओं से मोह नही करना चाहिए और ऐसी चीज़ों से दूर रहना चाहिए जो हमारी नही है या हमें किसी ने दी है

इस उपदेश से वह मनुष्यों को खुद पे काबू रखने और चीज़ों के मोह और लालच से दूर रहने का उपदेश देते है और खुद में संतुष्ट रहने को कहते है


4) अहिंसा 

उन्होंने हिंसा को पूरी तरह से अस्वीकार किया है, उनका मानना है की जीवन में कैसी भी परिस्थिति आ जाए हमें अहिंसा का ही पालन करना है और हिंसा से दूर रहना है

और किसी को भी तकलीफ नही देनी है, हिंसा हमेशा खुद को और दूसरों को तकलीफ देती है इसलिए हमें हिंसा का त्याग कर देना चाहिए, महावीर का जन्म की महत्ता उनके उपदेशों से झलकती है


5) सत्य

यह जीवन का सार है ऐसा सिर्फ महावीर नही कहते बल्कि हर ग्रन्थ और गीता में ऐसा ही कहा गया है और हमें हमेशा सत्य का पालन करना चाहिए

सत्य, छल आदि से दूर रहना चाहिए, और कुछ समय के सुख के लिए छल या झूट का सहारा नही लेना चाहिए


6) ब्रह्मचर्य

यहे सबसे मुख्य उपदेश है हमें खुदको काबू करके जीवन के सही रूप को जीना चाहिए जिसके लिए ब्रह्मचर्य का जीवन ही उत्तम है

ब्रह्मचर्य से हमें लगता है की हमें सन्यासी हो जाना चाहिए पर ऐसा नही है हमें अपने कर्तव्यों से नही उनके परिणाम की इच्छा से बचना है


7) सीमित संपत्ति

इस उपदेश के माध्यम से महावीर बताना चाहते है की जितना हमारे पास है हमें उतने में संतुष्ट रहना चाहिए और एक साधारण और संतुष्ट जीवन जीना चाहिए

 

FAQs: Mahaveer Ka Janm Kahan Hua Tha in Hindi 

सवाल : 24 तीर्थंकर का नाम क्या है ?

स्वामी महावीर ही जैन धर्मं के आखरी और 24 वे तीर्थकर है

सवाल : जैन धर्म के सभी तीर्थकरों के क्या नाम है ?

  1. ऋषभदेव या आदिनाथ
  2. अजितनाथ
  3. संभवनाथ
  4. अभिनन्दन नाथ
  5. सुमतिनाथ
  6. पद्रम प्रभु
  7. सुपार्श्व नाथ
  8. चन्द्र प्रभु
  9. सुविधिनाथ या पुष्प दन्त
  10. शीतल नाथ
  11. श्रेयांश
  12. वासुपूज्य
  13. विमलनाथ
  14. अनंत नाथ
  15. धर्मनाथ
  16. शांतिनाथ
  17. कुंथ नाथ
  18. अर्ह नाथ
  19. मल्लि नाथ
  20. मुनि सुब्रतनाथ
  21. नेमिनाथ
  22. अरिष्टनेमि
  23. पार्श्वनाथ
  24. महावीर

सवाल : जैन धर्म के 14 तीर्थंकर कौन थे?

अनंत नाथ जैन धर्म के 14 वे तीर्थकर है

सवाल : महावीर कौन से धर्म के थे?

यह जैन धर्म के 24 वे तीर्थकर है अर्थात इन्होने ही जैन धर्म को जीवित रखा और साथ में इतना विशाल और मजबूत भी बनाया

सवाल : महावीर का जन्मस्थान कहां है?

इनका जन्म स्थान बिहार राज्य में है

सवाल : महावीर का मृत्यु कब हुआ था

महावीर का मृत्यु 26 फरवरी ४७९ ईसा पूर्व को हुआ था।

सवाल : महावीर स्वामी का जन्म किस कुल में हुआ

जैन कुल में महावीर स्वामी का जन्म हुआ था

सवाल : बुद्धा और महावीर अलग धर्म के है?

बुद्धा बौद्धधर्म के संस्थापक है और महावीर जैन धर्म के संस्थापक है, इन दोनों के कार्य करने का समय एक ही था बस थोडा सा आगे पीछे का फरक है पर यह दोनों अलग है

इनके धर्म भी अलग अलग है, ऐसा कोई प्रमाण नही है जो यह कहे की दोनो कभी मिले है, बुद्ध का जन्म महावीर से पहले का है पर दोनों साथ में इस दुनिया में एक समय के लिए चेतना में थे पर इसका कोई प्रमाण नही है की दोनों मिले थे


Conclusion

आजके इस आर्टिकल में हमने स्वामी महावीर के जीवन से जुडी सभी चीज़ों के ऊपर अध्ययन किया, Mahaveer Ka Janm Kahan Hua Tha, कौन थे स्वामी महावीर, महावीर के उपदेश आदि के बारे में हमने विस्तार में जाना

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