Congress party ka pratham vibhajan kab hua

Congress party ka pratham vibhajan kab hua : आज का हमारा विषय भारत के आधुनिक इतिहास से जुड़ा रहने वाला है, जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भारत के आधुनिक इतिहास में ऐसी कई घटनाएं घटित हुईं जिसने भारत के संपूर्ण इतिहास को बदल कर रख दिया

और उनमें से एक ऐसी घटना के बारे में आज के इस लेख में हम चर्चा करने वाले हैं और उस घटना का नाम है कांग्रेस का पहली बार विभाजन या कांग्रेस का प्रथम बार विभाजन

इस घटना के बाद मानो संपूर्ण भारत के आधुनिक इतिहास मे एक नया मोड़ आया अर्थात की भारत के स्वतंत्रता संग्राम ने एक अलग दिशा प्राप्त की।

अभी तक जो स्वतंत्रता संग्राम की लौ जली आ रही थी कांग्रेस के इस विभाजन के बाद वह कहीं ना कहीं थोड़ी सी कमजोर पड़ गई थी।

आज के इस लेख में हम देखने वाले हैं कि कांग्रेस का प्रथम बार विभाजन किस प्रकार से हुआ और इस विभाजन के परिणाम स्वरूप हमारे भारत के आधुनिक इतिहास में कौन-कौन से प्रकार के बदलाव हुए।

 

Congress party ka pratham vibhajan kab hua
Congress party ka pratham vibhajan kab hua

 

कांग्रेस पार्टी का प्रथम बार विभाजन कब हुआ था – Congress party ka pratham vibhajan kab hua

अगर आपने आधुनिक भारत के इतिहास को सही प्रकार से पड़ा है तो आपको पता होगा कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कितनी बड़ी भूमिका थी।

इसी की बदौलत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक अलग ही प्रकार की दिशा प्राप्त हुई थी।

अगर आधुनिक इतिहास में से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को हटा दिया जाए तो हमें यह इतिहास 16 साथी का नजर आएगा।

 परंतु कांग्रेस पार्टी को भी अपनी स्थापना के कुछ वर्षों बाद ही विभाजन का सामना करना पड़ा था और यह विभाजन 1907 में किया गया था। 

आप सभी जानते होंगे कि अपनी स्थापना होने के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा हर वर्ष अपने अधिवेशन आयोजित किए जाते थे और हर वर्ष की भांति 1907 में भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा गुजरात के सूरत में अपने राष्ट्रीय अधिवेशन को संचालित किया जा रहा था और यहीं पर कांग्रेस का विभाजन दो दलों में हो गया।

इनमें से पहला दल था गरम दल और इनमें से दूसरा दल था नरम दल

कांग्रेस पार्टी के इस विभाजन को सूरत विभाजन भी कहा जाता है,  क्योंकि जिस समय विभाजन हुआ था उस समय 1907 में कांग्रेस पार्टी का सूरत अधिवेशन चल रहा था।

इस दिन को कांग्रेस पार्टी के इतिहास में एक काले दिन के रूप में माना गया था।1960 के सूरत अधिवेशन की अध्यक्षता रासबिहारी गोष द्वारा की गई थी।

 

कांग्रेस पार्टी का विभाजन कितने दलों में हुआ ?

1907 के सूरत अधिवेशन में कांग्रेस का विभाजन दो दलों में हो गया था। इनमें से पहला दल था गरम दल और दूसरा दल था नरम दल

इनमें से कांग्रेस के गरम दल का नेतृत्व बाल गंगाधर तिलकलाला लाजपत राय द्वारा किया जा रहा था क्योंकि यह कांग्रेस में उग्रवादी नेताओं के नाम से प्रसिद्ध थे।

इन गरम दल के नेताओं का यह मानना था कि भारत में अंग्रेजों की सत्ता को केवल हिंसा द्वारा ही दूर किया जा सकता है अर्थात की हटाया जा सकता है।

इस कारण से इस दल का महात्मा गांधी के साथ बहुत ज्यादा मनमुटाव रहता था और महात्मा गांधी भी भारतीय राष्ट्र कांग्रेस के इस दल का समर्थन नहीं करते थे।

महात्मा गांधी का यह मानना था कि किसी भी समस्या का हल अहिंसा से निकाला जा सकता है तो हमें सर्वप्रथम उसे ही मान्यता देनी चाहिए ना कि हिंसा को परंतु इस दल के नेताओं का विश्वास अहिंसा में नहीं था।

अगर दूसरी और बात की जाए तो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नरम दल का नेतृत्व पंडित जवाहरलाल नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू द्वारा किया जा रहा था।

यह प्रमुख रूप से अहिंसा के समर्थक थे और उनका मानना था कि अंग्रेजों की सत्ताधारी समस्याओं को भी अहिंसा से निपटाया जा सकता है।

मोतीलाल नेहरू स्वयं महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित थे। इसी कारण महात्मा गांधी द्वारा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के इसी दल का समर्थन किया गया था।

 

कांग्रेस पार्टी का प्रथम विभाजन क्यों हुआ था ?

कांग्रेस पार्टी का विभाजन होने के ऐसे कई सारे कारण थे, जिनके कारण भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का 1907 के सूरत अधिवेशन में विभाजन हुआ था परंतु जो सर्वाधिक उत्तरदाई कारण थे, वे निम्नलिखित हैं।

1) कांग्रेस का प्रथम विभाजन का पहला कारण था कांग्रेस पार्टी के अंदरूनी भाग में चल रही अध्यक्ष पद की राजनीति।

1907 के सूरत अधिवेशन से पहले ही कांग्रेस पार्टी दो गटों में बट चुकी थी।

उनमें से पहले गट का नेतृत्व बाल गंगाधर तिलक द्वारा किया जा रहा था, तो दूसरे गुट का नेतृत्व मोतीलाल नेहरू द्वारा।

इन दोनों गटों की शुरुआत भारतीय राष्ट्र कांग्रेस के 1905 के बनारस अधिवेशन में ही हो गई थी।


2) विभाजन का दूसरा कारण था कांग्रेस पार्टी में दो अलग-अलग विचारधाराओं का उदय होना।

जैसा कि हम सभी जानते हैं किसी भी पार्टी में यदि अलग-अलग विचारधाराओं के लोग सम्मिलित होंगे तो वह पार्टी ज्यादा दिनों तक आगे नहीं बढ़ पाएंगे।

अगर किसी भी पार्टी की बात की जाए तो पार्टी वह होती है जिसमें एक समान विचारधारा के लोग कार्यकर्ताओं के रूप में कार्य करते हैं परंतु यहां पर राष्ट्र कांग्रेस में एक विचारधारा के अलावा एक अन्य और विचारधारा के लोग भी कार्य कर रहे थे।


3) कांग्रेस के विभाजन का तीसरा कारण यह था की कांग्रेस पार्टी के उग्रवादी नेता बाल गंगाधर तिलकलाला लाजपत राय में से किसी एक को 1906 के कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन का अध्यक्ष बनाना चाहते थे,

परंतु अन्य सदस्यों द्वारा इसका विरोध किए जाने पर ऐसा ना हो सका और साथ ही कांग्रेस के नरमपंथी दल द्वारा डॉक्टर रासबिहारी घोष को अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव भी लाया गया था।

इस कारण भी कांग्रेस का विभाजन होना लगभग तय माना जा रहा था जो कि 1907 के सूरत अधिवेशन में हम सभी के सामने आ गया।

1906 के कलकत्ता अधिवेशन में उस समय कांग्रेस के विभाजन को रोक दिया गया

क्योंकि अंत में दादा भाई नौरोजी को उस समय 1906 के कलकत्ता अधिवेशन का अध्यक्ष बनाया गया था जिससे कि उग्रवादी नेता भी शांत हो गए तथा साथ ही कांग्रेस के नरमपंथी नेता भी शांत हो गए थे।


4) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विभाजन का चौथा कारण यह था कि स्वदेशी आंदोलन का विस्तार पूरे देश में नहीं किया गया था।

कांग्रेस पार्टी के उग्रवादी नेता बाल गंगाधर तिलक द्वारा यह सुझाव दिया गया था कि भारत में चल रहे स्वदेशी आंदोलन को केवल भारत के कुछ क्षेत्रों में सीमित ना रखते हुए इसे संपूर्ण भारत में लागू किया जाए

परंतु उनके इस प्रस्ताव का अनेक सदस्यों द्वारा विरोध किया गया था इस कारण भी कांग्रेस पार्टी के विभाजन हुआ था।


5) कांग्रेस के विभाजन का पांचवा कारण यह था की इसके कुछ सदस्य चाहते थे कि अंग्रेजों की सत्ता को हिंसा द्वारा उखाड़ फेंका जाए परंतु कांग्रेस पार्टी के नरम दल के नेताओं का यह मानना था कि इससे भारतीय लोगों का नुकसान ज्यादा होगा क्योंकि अंग्रेजों के पास ज्यादा शक्ति व सेना है।

कांग्रेस पार्टी द्वारा अपने आदर्श के रूप में भी महात्मा गांधी को माना जाता था।

अतः यह भी एक कारण था कि कांग्रेस पार्टी अहिंसा के साथ ही अंग्रेजों की सत्ता को भारत से हटाना चाहती थी परंतु कांग्रेस पार्टी के गरम दल के नेताओं को यह बिल्कुल भी रास नहीं आया

और इसका परिणाम यह हुआ कि 1907 के सूरत अधिवेशन में कांग्रेस को अपना प्रथम विभाजन देखना पड़ा।


6) कांग्रेस के विभाजन का छठा कारण यह था कि कांग्रेस पार्टी के उग्रवादी नेता 1907 के कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन को सूरत में ना आयोजित करवा के महाराष्ट्र के नागपुर में आयोजित करवाना चाहते थे

और साथ ही वे चाहते थे कि इस 1907 के नागपुर अधिवेशन का अध्यक्ष बाल गंगाधर तिलक या लाला लाजपत राय में से किसी एक को बनाया जाए

परंतु वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के नरमपंथी नेताओं द्वारा यह मांग की जा रही थी कि 1907 के सूरत अधिवेशन को महाराष्ट्र के नागपुर में ना आयोजित करवा कर सूरत में ही आयोजित करवाया जाए।

अतः अध्यक्ष पद के दावेदार को लेकर भी कांग्रेस पार्टी को अपना प्रथम विभाजन देखना पड़ा था।


7) कांग्रेस पार्टी की विभाजन का सातवा और प्रमुख कारण यह था कि राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्यों द्वारा उग्रवादी नेताओं को शक की दृष्टि से देखा जाता था

और अन्य सदस्यों का यह मानना था कि यह उग्रवादी नेता कांग्रेस पार्टी की विचारधारा के अनुरूप नहीं चल रहे हैं अर्थात की अहिंसा का पालन नहीं कर रहे हैं।

कांग्रेस पार्टी के अन्य सदस्यों की 1907 के सूरत अधिवेशन से पहले भी कई बार मांग की गई थी कि इन उग्रवादी नेताओं को कांग्रेस पार्टी से बाहर कर दिया जाए और यह बातें कांग्रेस पार्टी के उन उग्रवादी नेताओं तक भी पहुंच गई थी।


कांग्रेस पार्टी का दूसरी बार भी विभाजन हुआ था ?

आप सभी यह सोच रहे होंगे कि हम बार-बार यह कह रहे हैं कि कांग्रेस पार्टी का प्रथम बार विभाजन 1907 में हुआ था। तो क्या 1907 के बाद या 1907 से पहले भी कांग्रेस पार्टी का विभाजन हुआ था। तो इसका उत्तर है हां।

कांग्रेस का दूसरी बार भी विभाजन हुआ था और वह हुआ था 1918 में। यह 1918 में होने वाला विभाजन महाराष्ट्र के मुंबई में हुआ था।

आप में से कई लोग यह मान रहे होंगे कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का दूसरा विभाजन तो 1969 में किया गया था परंतु यह विभाजन आधुनिक इतिहास के संदर्भ में सही हैं

क्योंकि इस समय तक भारत को आजादी मिल चुकी थी और अब इस राष्ट्रीय कांग्रेस के संपूर्ण कार्य और कार्य करने के तरीके भी अलग हो चुके थे।

 

कांग्रेस (Congress) पार्टी का दूसरी बार विभाजन क्यों हुआ था ?

अभी तक Congress party ka pratham vibhajan देश से पूरी तरह उबर भी नहीं पाई थी कि 1918 आते-आते भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को अपने दूसरे विभाजन का सामना भी करना पड़ा और यह विभाजन महाराष्ट्र की वर्तमान राजधानी मुंबई में हुआ था।

कांग्रेस के इस दूसरे विभाजन के भी कई सारे कारण थे इनमें से प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।

  1. पहला कारण तो यह था कि इस बार भी उग्रवादी नेताओं के सुझाव को सही रूप से नहीं समझा जा रहा था इस कारण से कांग्रेस पार्टी को अपना दूसरा विभाजन 1918 में देखना पड़ा।

  2. दूसरा कारण यह था की 1919 में अंग्रेजों द्वारा मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड समझौता लाया जा रहा था। उसमें ऐसी कई सारी बातें थी जो भारतीय लोगों के लिए अनुचित थी परंतु भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा इसका किसी प्रकार का विरोध नहीं किया जा रहा था। जिस कारण भी कुछ सदस्यों द्वारा इसका विरोध किया गया और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक बार फिर से विभाजन हुआ।

  3. सबसे प्रमुख कारण यह था कि जब बाल गंगाधर तिलक द्वारा मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड समझोते को लेकर अपनी एक रिपोर्ट को कांग्रेश के समक्ष प्रस्तुत किया गया तो कांग्रेस के सदस्यों द्वारा उसकी कड़ी निंदा की गई। इस कारण भी कांग्रेस पार्टी के कई सारे सदस्यों ने अपनी पार्टी छोड़ने का फैसला कर लिया था और कांग्रेस का यह दूसरी बार विभाजन होना भी लगभग तय माना जा रहा था।

 

कांग्रेस (Congress) पार्टी का तीसरी बार भी विभाजन हुआ था ?

आप सोच रहे हैं होंगे कि अब तक के लेख में हमने यह तो पढ़ लिया कि कांग्रेस पार्टी का दो बार विभाजन हुआ था। कांग्रेस पार्टी का पहला विभाजन 1907 के सूरत अधिवेशन में हुआ तो इसका दूसरा विभाजन 1918 के मुंबई अधिवेशन में हुआ था।

इसके अलावा भी आधुनिक इतिहास में भी कांग्रेस पार्टी का तीसरी बार विभाजन 1969 में हुआ था

परंतु या विभाजन एक चुनावी राजनीति के कारण हुआ था इस कारण से कई सारे इतिहासकारों द्वारा इसे कांग्रेश के तीसरे विभाजन के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है परंतु पढ़ने के उद्देश्य से हम इसे कांग्रेस का तीसरा विभाजन मान सकते हैं।

 

कांग्रेस पार्टी की स्थापना कब की गई थी 

आज जो हम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी को देख रहे हैं, इसकी जड़े लगभग सौ से डेढ़ सौ साल पुरानी है अर्थात की कांग्रेस पार्टी की स्थापना आज से लगभग 130 साल पहले 1885 में अंग्रेज अधिकारी ऐ ओ ह्यूम द्वारा की गई थी।

 

FAQ : Congress party ka pratham vibhajan kab aur Kyo Hua

सवाल : कांग्रेस पार्टी (Congress) का प्रथम बार विभाजन कब हुआ था।

कांग्रेस पार्टी का प्रथम बार विभाजन 1907 के सूरत अधिवेशन में हुआ था।

सवाल : 1907 के सूरत अधिवेशन के परिणाम स्वरूप क्या हुआ।

1907 के सूरत अधिवेशन के परिणाम स्वरुप भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को दो भागों में बांट दिया गया। इनमें से पहला भाग उग्रवादी नेताओं का था जिसे गरम दल के रूप में माना गया जबकि दूसरा भाग नरमपंथी नेताओं का था जिसे नरम दल के रूप में माना गया।

सवाल : कांग्रेस पार्टी का दूसरी बार विभाजन कब हुआ था

कांग्रेस पार्टी का दूसरी बार विभाजन 1918 के मुंबई अधिवेशन में हुआ था।

सवाल : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना कब और कहां की गई थी।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 1885 में महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में की गई थी परंतु उस समय तक महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई नहीं थी।

सवाल : कांग्रेस पार्टी की स्थापना किन के द्वारा की गई थी।

कांग्रेस पार्टी की स्थापना अंग्रेज अधिकारी ए ओ ह्यूम द्वारा की गई थी।

 

Conclusion

आज के इस लेख में हमने Congress party ka pratham vibhajan kab hua के बारे में वह सभी जानकारियां एकत्रित की है और उनको जाना है जो आपके लिए जानना बेहद जरूरी है।

जैसे कि कांग्रेस पार्टी का प्रथम बार विभाजन कब हुआ, कांग्रेस पार्टी का दूसरी एव तीसरी बार विभाजन कब और क्यों हुआ जैसे सभी महत्वपूर्ण सवालों का जवाब इस लेख में विस्तार में प्रदान किया है

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